Monday 8 July 2013

अपना सा था वो दोस्त...

(इस खूबसूरत चित्र के फोटोग्राफर हैं राजू गुप्ता)

तुम्हारी बातों को सुनकर ना जाने क्युं मन भर आया था..आंखों में कुछ चमकते मोती भी इकट्ठा हो गए थे...रूख के दूसरी तरफ कर लेने के बाद भी अपने आंखों में आए आंसुओं को तुमसे छुपाने में नाकाम रही थी...और सिर्फ आंसुओं को छुपाने में ही क्यों, कई जगह तो नाकाम रही थी मैं...शायद उस दोस्ती में भी जो तुमसे अंजाने में ही बंध गया था...कहां बांधा कभी खुद को तुम्हारे सामने..कि हमेशा लगता रहा तुम जुदा नहीं हो मुझसे...मेरा ही अक्स हो...और नाजाने कितनी बार दिल दुखाया तुम्हारा..इसी नादानी में...ऐसा महसूस हुआ था कि तुम्हारे साथ खुश होती हूं...ज्यादा, बहुत ज्यादा...तुम भी तो खुश नज़र आते थे हमेशा...कितनी शामें यूंही बिताई थी साथ में...बेवजह, कुछ हासिल ना हो जानेवाली बातों के बीच...

तुमने कहा था, ‘अब हम नहीं मिलेंगे, लौटा दुंगा तुम्हारी सभी चीजें जो तुमने दी थी मुझे,’ यह कहकर ना जाने किस हिसाब किताब में जुट गया था वो...टूथपेस्ट, टूथब्रश, वो किताबें और पानी के बहुत से बॉटल, तुम्हारा दिया हुआ आचार और हां वो चॉकलेट भी, जो तुमने अभी हाल ही में दिया था...ना जाने क्या क्या कहता रहा था वो...ये कहते हुए उसकी आंखों में चमकते पानी को महसूस किया था मेरे दिल ने... मैंने सोचा कह दूं उससे कि बस इतनी ही चीजें...शायद तुम्हें याद नहीं...आओ याद दिलाऊं...लौटा देना इन चीजों के साथ उस वक्त को भी जो व्यतीत किए थे तुम्हारे साथ...उन हंसी के पलों को, और उन पलों को भी जिसमें आंसू बिखेरे थे...क्या उन पलों को लौटा पाओगे जो खर्च किए हैं तुम पर...उन लम्हातों को जिनमें ना जाने कितनी बार सोचा था तुम्हारे बारे में...सच, हिसाब किताब में बहुत बुरे हो तुम...

कभी कभी अतीत के पन्नों को पलटना इतना अजीब क्यों लगता है? हंसी के पल होते हुए भी आंखों को नम कर जाते हैं यह बीते हुए पल...किसी के बिछड़ने क दर्द होता है तो किसी नए के मिलने की खुशी...बार बार क्यों लगता है कि वक्त फिर लौट गया है वहीं जहां से बढ़ आई थी आगे...बहुत आगे...वक्त भी कैसा अजीब है...किसी रूप बदलते बहरूपिया की तरह...पर यह बहरूपिया भी अच्छा लगता है कि अपने बदलते कई चेहरों के साथ हमें बार बार मजबूत होने की ताकत देता है...खुद से मुहब्बत करना सिखाता है...नफरत करना सिखाता है...गिरना और फिर संभलना सिखाता है...

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