Tuesday 28 June 2011

छोड़ आई हूँ खुद को उसी बस स्टॉप पर...


लगता है छोड़ आई हूँ खुद को उसी बस स्टॉप पर...जहां कल आखिरी बार तुम्हें खुद से जुदा होते हुए देखा था...तुम तो चले गए पर मेरी निगाहें तुम्हारा पीछा करती रहीं...तुम्हारे उस आखिरी कदम तक...जब तक के तुम मेरी नज़रों से ओझल नहीं हो गए...तुम चले गए पर मै आज भी वहीँ खडी हूँ...तुम्हारे उसी एक स्पर्श के साथ...तुम्हारी उसी एक आखिरी निगाह के साथ...जो तुमने ना जाने क्या छुपाने के लिए मुझसे नहीं मिलाई थी...नहीं ये गलत है की चाहती हूँ तुमको...पर नही जानती ये क्या एहसास है...क्यूँ मन बेचैन है...बैठी हूँ उसी कमरे में जहां घंटों हम साथ होते थे...अपनी ही दुनिया में खोये हुए से... याद आता है रह रहकर वो तुम्हारी बातों पर मेरा खिलखिलाकर हंस देना...और तुम्हारा कनखियों से मुझे वो चुप रहने का इशारा करना...फिर वो अचानक ही ख़ामोशी की दुनिया में दोनों का खो जाना...वो एक बूँद पानी की बात पर तुम्हारा मेरा मज़ाक उड़ना...वो बंच की बातें...शायद तुम्हारे अलावा कोई दूसरा समझ सके...पर आज तुम्हारे बिना हर चीज़ बड़ी अधूरी सी लग रही है... इस कमरे की वो छोटी सी कुर्सी तुम्हारा इंतज़ार कर रही है...मोनिटर की नज़रें तुम्हें ही ढूंढ  रही हैं...तुम शायद अपनी दुनिया में खो गए होगे...नहीं आती होगी तुम्हे हमारी याद...

पर मेरी निगाहों को इंतज़ार है तुम्हारा...काश तुम आते मेरे पीछे चुपके से खड़े हो जाते...मेरी आँखों को अपने हाथों से छुपाकर खुद को पहचान ने के लिए जोर देते...और मैं जानकर भी तुम्हे पहचान ने का नाटक करती...फिर अचानक ही नाम तुम्हारा लेकर पीछे मुडती...तो मुस्कुराता हुआ चेहरा तुम्हारा नज़रों के सामने पाकर...खुशी से झूम उठती...जानती हूँ मैं तुम नहीं हो यहाँ... फिर भी तुम्हे देखने की ख्वाहिश में अचानक ही पीछे देखा मैंने...ना जाने क्या सोचकर...तो सपनो की दुनिया को हकीकत में ना पाकर मन फिर बेचैन हो उठा...फिर तुम्हारी यादों का दामन मेरे हाथों में ठहर गया...फिर चारो तरफ सन्नाटा पसर गया...तुम नही हो यहाँ...कहीं नहीं हो...पर फिर भी यहीं हो...मेरे पास...बहुत पास..!!!

8 comments:

  1. लेखन में काफ़ी गहराई है...

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    1. shukriya amya ji...ummeed hai aap aage bhi yunhi hausla afzaai karte rahenge....:)

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  3. waah waah waah........... bahot khub !!!!!!!!!

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  4. Falaque khaishagi18 November 2017 at 20:43

    behad khoobsurat

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  5. Yeh padh karr mujhe meri maa yaad aa gai. mai hamesa apni maa ke saath khela karrta tha fir ek din papa computer lee aai aur mai zaada samay computer pe bitane laga. mumma hamesa bolti thi ki tum baat kyu nai karrte par ek minute ek minute karr ke mai baat nai karr pata aaj jab job ke liye nikala hu tab maa ki ehmiyat samajh aari hai. Sorry maa aaj se saara samay tumhara

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