कितना हसीं था वो बचपन
हर चीज़ कितनी प्यारी थी
हर चीज़ कितनी प्यारी थी
सबको मासूम लगती थी
मां की बड़ी दुलारी थी
छल, कपट, हसद, जलन
क्या होती है बला
इल्म ही नहीं था इसका
दुनिया बड़ी सुन्दर,बड़ी हसीन नज़र आती थी
अनजान थी दुनिया से
सब लोग भले लगते थे
संग कितनी नादानी थी
हर तरफ रंग थे
खुशियों की बरसात में मन झूमता था
हर चीज़ मन के मुताबिक़ थी
वो हँसना, वो मुस्कुराना
भरी दोपहर में सहेलियों के साथ खेलने निकल जाना
तब हवाएं भी गुदगुदाती थी
न थी किसी चीज़ की फ़िक्र
न दुनिया का झमेला था
साथ था कुछ तो बस वो नानी की कहानी थी
न आंसू थे, न दर्द थे
न सोचो का ये कारवा था
दिल को हर चीज़ बड़ी आसानी से भा जाती थी
वो बचपन की यादें, सुन्दर तस्वीर सी यादें
रोती आँखों को भी हसा जाती है और
हर पल ये कहती है
कितना हसीन था वो बचपन
हर चीज़ कितनी प्यारी थी