कुछ लम्हें देना चाहते
हैं तुम्हें खुशियों के हम
कुछ लम्हें देना चाहते हैं तुम्हें अपनेपन
के हम
कुछ लम्हें मुस्कुराने के, कुछ लम्हें उदास
रहने के,
और कुछ लम्हें यूंही तसव्वुर के,
तसव्वुर किसी पराए का जो अपना हो
सच होते हुए भी लगता है सपना जो,
कभी कभी अच्छा लगता है
यूंही खो जाना, बेवजह,
किसी अनदेखे नुक्ते को निहारते रहना
घंटों तक,
किसी के ख्यालों में खोए रहना
सोचते हुए उसे, मुस्कुराते रहना,
बस अच्छा लगता है
क्या यह काफी नहीं
काफी नहीं
कि इतनी दुश्वारियों में, दिन भर के थकान में,
ज़िदगी की मशरूफियात में, अपनों की जुदाई में,
कुछ लम्हों का अच्छा लगना,
क्या यह काफी नहीं...