Monday 22 April 2013

लम्हें...



कुछ लम्हें देना चाहते हैं तुम्हें खुशियों के हम
कुछ लम्हें देना चाहते हैं तुम्हें अपनेपन के हम
कुछ लम्हें मुस्कुराने के, कुछ लम्हें उदास रहने के,
और कुछ लम्हें यूंही तसव्वुर के,
तसव्वुर किसी पराए का जो अपना हो
सच होते हुए भी लगता है सपना जो,
कभी कभी अच्छा लगता है
यूंही खो जाना, बेवजह,
किसी अनदेखे नुक्ते को निहारते रहना
घंटों तक,
किसी के ख्यालों में खोए रहना
सोचते हुए उसे, मुस्कुराते रहना,
बस अच्छा लगता है
क्या यह काफी नहीं
काफी नहीं
कि इतनी दुश्वारियों में, दिन भर के थकान में,
ज़िदगी की मशरूफियात में, अपनों की जुदाई में,
कुछ लम्हों का अच्छा लगना,
क्या यह काफी नहीं...

Wednesday 17 April 2013

अपनी दोस्ती के नाम...


बहुत लिखने की कोशिश की लेकिन लिख नहीं पाती
तुमको सोचते हुए
फिर सोचा लिखूं तुम्हारी आंखों पर
जिन्हें समझने में अक्सर नाकाम रहती हूं मैं
फिर सोचा लिखूं तुम्हारी मुस्कुराहट पर
जो बिखरती हैं साहिल पर समंदर की लहरों की तरह
फिर सोचा लिखूं तुम्हारी हंसी पर
जिसमें बच्चों की सी मासूमियत है
फिर सोचा बांधूं अपनी दोस्ती को कुछ लफ्जों में
लिखूं उन लम्हों पर, जिनमें साथ थे
हंसते हुए, बोलते हुए
या फिर कुछ सोचते हुए
या उन लम्हों पर जब तुम्हारे पास होने को महसूस किया था
लेकिन आसान नहीं जज़्बातों को बांध देना
क्यूं न यूंही रहने
बहने दें, उड़ने दें खुद को
मैंने भी तो देखा है पहली बार
किसी के साथ खुद को बहते हुए...

तुम्हारी आंखो से...



वो आसमान जो दूर दूर तक फैला है
उसका एक छोर पकड़ा है तुमने तो दूसरा हमने  भी थामा है
खिड़की से जब तुम आसमान को देखते हो
तो निहारते हम भी हैं
तुम सोचते हो कि ना जाने कहां तक फैला है इसका सिरा
रंग बड़े हसीन हैं इसमें समाए हुए
ना जाने कहां जाकर मिलते हैं इसके सिरे
तुम कहते हो जहां तुम बैठी हो
वहां से कुछ नहीं दिखता तुम्हें
हमें तो दिखता है वो खुला आसमां दूर दूर तक फैला हुआ
हमें तो दिखाई देते हैं पंक्षियों के झुंड उड़ते हुए
उनकी आवजें, जैसे सांझा कर रहे हों अपने दिनभर के अनुभव
तुम कहते हो हम नहीं देख सकते उन्हें
लेकिन अनुभव हम भी वही कर रहे हैं
जो तुम महसूस करते हो
तुम्हारे लिए तुम जुदा हो हमसे
लेकिन हमारे लिए नहीं
जब तुम आसमान को देखते हो
तो निहारते हम भी हैं
जो तुम देखते हो, देखते हम भी हैं...