फिर आई थी उनकी याद जैसे आ जाते हैं उदासी भरी रातों में आंखों में चमकते
मोती...ये ठंडी हवा रूह को भेदती हुई...आई है फिर उनकी याद ना जाने कीतनी बार...ए
सारा जहां था और थी ढ़ेर सारी तन्हाई...ना छेड़ो ये तराना...ये साज ये दर्द भरे नगमें...मुश्किल
हो जाता है जीना, तुम बढ़ गए...दूर निकल गए...मैं अब भी खड़ी हूं तुम्हारा दामन
थामें...कई बार कोशिशें कीं कि समझोगे तुम…पर तुमने कभी खोले ही नहीं दिल के दरीचे…और मैं ना जाने क्या क्या कहती
हुई...आज भी तुम्हारे इंतजार में खड़ी हूं...कुछ दुआएं, कुछ प्रार्थनाएं यूं ही
होती हैं ज़ाया होने के लिए...पड़े पड़े बेकार सड़ने के लिए...नहीं तो...कभी तो
तुम मुझे मिलते यूं ही...सिर्फ मेरे लिए...
सिर्फ
मेरे लिए
मेरे ख्वाबों
के लिए...
ऐसा ख्वाब
जहां तुम हो
मेरे साथ
मेरे होकर...
पर कहां
समझा तुमने
मेरी
मुस्कुराती आंखों को
...
लिखती रही हूं यूं ही
तुम्हे सोचते हुए कि तुम्हारा इंतजार खत्म हो...पर तू, तेरी यादें, तेरा इंतजार
खत्म नहीं होता...और मैं जीती रहती हूं सिर्फ तेरे लिए...तुझे सोचते हुए...
(यह पोस्ट एक दोस्त के लिए...)