Wednesday, 17 April 2013

अपनी दोस्ती के नाम...


बहुत लिखने की कोशिश की लेकिन लिख नहीं पाती
तुमको सोचते हुए
फिर सोचा लिखूं तुम्हारी आंखों पर
जिन्हें समझने में अक्सर नाकाम रहती हूं मैं
फिर सोचा लिखूं तुम्हारी मुस्कुराहट पर
जो बिखरती हैं साहिल पर समंदर की लहरों की तरह
फिर सोचा लिखूं तुम्हारी हंसी पर
जिसमें बच्चों की सी मासूमियत है
फिर सोचा बांधूं अपनी दोस्ती को कुछ लफ्जों में
लिखूं उन लम्हों पर, जिनमें साथ थे
हंसते हुए, बोलते हुए
या फिर कुछ सोचते हुए
या उन लम्हों पर जब तुम्हारे पास होने को महसूस किया था
लेकिन आसान नहीं जज़्बातों को बांध देना
क्यूं न यूंही रहने
बहने दें, उड़ने दें खुद को
मैंने भी तो देखा है पहली बार
किसी के साथ खुद को बहते हुए...

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