Sunday 7 August 2011

कितनी बार वादा किया था खुद से

कितनी बार वादा किया था खुद से कि भूल जाउंगी...नहीं याद करुँगी तुम्हे और...तुम्हारी उन बातों को....उन शरारतों को...जो मेरी आँखों को पनियाला कर देती हैं...हर बार खुद से वादा करती हूँ...अब नहीं खर्च होगी मेरी कलम की स्याही तुम पर...एक लफ्ज़ भी नहीं लिखूंगी...तुम को याद करके...पर हर बार ये वादा न जाने कहाँ छुप जाता है...न जाने किस रजाई के नीचे...किस किताब के पीछे...कि मुझे मिलता ही नहीं...फिर एकबार वादा किया है....नहीं लिखूंगी तुम्हारे बारे में...खासकर तुम्हारे मुस्कराहट के बारे में...जिसे अक्सर समझने में नाकाम हो जाती हूँ मैं...

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