Tuesday 11 October 2011

हज़ारो जज़्बात...

हज़ारो जज़्बात थे मेरे दिल में 
हज़ारो ऐसी बातें जो दिल ने
चाहा था आपसे बाटूँ, आपको 
बताऊँ, पर कभी आपके मिजाज
बदले हुए लगे, तो कभी हम आपसे 
खफा हो गए. ज़िन्दगी जिस रफ़्तार
से बढती रही, उसी रफ़्तार से मेरे
जज़्बात भी बदलते रहे, उम्मीद का
दामन छूटने लगा. महसूस हुआ 
की कितने नादाँ थे हम जो
अपनी हर ख़ुशी आपसे जोड़ते रहे
सोचा मेरे हर ख़ुशी, हर गम
हर हालात में आप मेरा साथ देंगे
एक दोस्त की तरह, एक भाई की 
तरह. पर हर पल हमें एहसास
होता रहा की मेरे उम्मीदों का 
घरौंदा ढह जाने के लिए है और
आपको यह इख्तियार है की मेरे 
मेरे हर उम्मीद को आप तोड़ दें
पर फिर क्यूँ आप हमें 
भरमा रहे हैं, क्यूँ फिर नादाँ दिल को 
ये समझा रहे हैं
की आप हो मेरे हर ख़ुशी 
हर गम में. आप क्यूँ ये
सोचो का महल खड़ा कर रहे हो
मेरे सोचो को फिर 
गलत साबित कर रहे हो
ऐसा क्यूँ होता है की मेरी
हर उम्मीद, हर सोच हर
मोड़ पर ख़तम हो जाती है
गलत साबित हो जाती है
एक लंबा सफ़र तय करने के बाद 
हाथ सिर्फ इतना लगता है 
की मेरी सोच कभी मेरा 
साथ नहीं देती
तो कभी मेरा साथ 
सोचो को गुमराह कर देती है
हर वक़्त साथ एक सवाल ,एक सोच रहती है... 

No comments:

Post a Comment