Saturday 8 June 2013

ज़िंदगी यूं ही चलती रहे...





तुमसे कितनी बार कहा है कि मत किया करो ऐसा, मत बांधो खुद को किसी एक बंधन में क्योंकि मुझे एहसास होता है कि तुम घुटने लगते हो. कभी कभी तो तुम्हारी यह घुटन इतनी बढ़ जाती है कि तुम बेचैन हो जाते हो. कई बार कहा है पहले, आज फिर कह रही हूँ अगर दिल में कोई बात कोई दर्द होता है तो कह दिया करो कि खुद को आज भी तुम्हारी दोस्त समझती हूँ. पर तुमने ना जाने जिंदगी को किस परिभाषा में बांध रखा  है.

मैं पहले समझती थी कि जिंदगी इतनी आसान नही जितनी हम उसे समझते हैं पर आज मैं ही कह रही हू़ कि जिंदगी उतनी मुश्किल भी नहीं जितनी तुम उसे समझते हो. वैसे भी बताओ क्या मिला तुम्हे जिंदगी को इतनी संजिदगी से देखने के बाद. तकलीफ में हो ना, बेचैन भी हो? फिर क्युँ ना कुछ बच्चों की तरह कुछ पागलों की तरह मतलब मेरी तरह बर्ताव कर लो. शायद तुम्हे अच्छा लगे? पर ये भी जानती हू़ नहीं मानोगे तुम मेरी किसी बात को. कहाँ माना है तुमने आजतक? वैसे भी मेरी किसी बात पर कहाँ एतबार है तुम्हे. क्यु़ं दूर रखा है खुद को खुशियों से? मां से बाते करो, कभी पापा की भी तो सुनो, झांकने की कोशिश करो उनमें, शायद दिखे तुम्हेँ कि वो तुमसे कितनी मुहब्बत करते हैं. समझ जाओगे कभी तो कि तुम्हारे आसपास ऐसे कई लोग हैं जो तुमसे बहुत मुहब्बत करते हैं क्योंकि मेरे दोस्त दुनिया में मुहब्बत का सिर्फ एक ही रूप नहीं होता. समझो कभी तो कि खुशियों से तुम्हारा भी सरोकार है. खुद को बहने दो, कभी तो थंडी हवा को महसूस करो. 

यूँ ही नहीं कि तुम्हें बस यही कहना चाहती हू़, कहना तो बहुत कुछ है पर लफ्ज़ों की जुबान भी कासिर है. कल तुमसे बात हुई, शायद तुम्हे एहसास भी नही होगा कि तुम्हारे उस तरह चिल्लाने से मुझे कितनी तकलीफ पहुँची होगी. इसलिए नहीं कि तुम मुझपर चीख रहे थे इसलिए कि तुम्हारी उस झुंझलाहट में तुम्हारी बेचैनी, तुम्हारी कैफियत और तुम्हारे दर्द को समझ सकती थी मैं. पर मैं क्या कर सकती थी बस तुम्हे दिलासा देने के अलावा? इतना सबकुछ कह देने के बाद इंसान हल्का महसूस करता है पर मैं समझती हूँ कि तुम्हारी बेचैनी कम नही हुई होगी. ना जाने किस चीज की तलाश में भटक रहे हो? आस पास देखो शायद तुम्हे वो चीज़ तुम्हारे बहुत ही करीब मिले. 

कहना तो यह भी है कि किसी को भुलाने के लिए यह याद रखना कि उसे भुलाना है, बहुत अजीब बात है. कभी नही भूल पाओगे इस तरह. मेरी बात मानो और मत बांधो खुद को इतनी जंजीरो में, इतने उसूलों में...  

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