Friday 15 July 2011

कश्मकश ज़िन्दगी की...

कई बार सोचती हूँ कि क्या सच में कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो हमें उलझाये रखतीं हैं... क्या हम इस काबिल भी नहीं की कुछ जज्बातों, कुछ बातों को समझ सकें... क्यूँ हम खुद को हज़ार परतों में बांधकर रखते हैं...भागते रहते हैं सच से...पर कहाँ तक भागेंगे...जहां देखो ज़िन्दगी की उलझने अपना सर उठाये खड़ी रहतीं हैं...सुबह ही सुबह कॉलेज के लिए बड़ी ख़ुशी ख़ुशी तैयार होती हूँ...मलाड के साफ सुथरे रोड पर(ज्यादातर रोड में खड्डे ही होते हैं) कानों में हेड सेट घुसेड़े अपने बस स्टॉप पर पहुँचती हूँ...तब शुरू होता है सिलसिला सोचों का...और मेरे भटकने का...जब बस कि कतार में किसी बुज़ुर्ग को देखती हूँ तो मन में कई सौ सवाल खड़े हो जाते हैं...जब भागते लोगों के चेहरे के  शिकन पर नज़र जाती है तो ज़िन्दगी की कश्मकश का एहसास होता है...बस में चढ़ने की होड़ में लोग भूल जाते हैं कि उनके आगे एक महिला खड़ी है...और सभ्यता, इंसानियत नाम की भी कोई चीज़ होती है...पर इसमें उनका भी क्या कुसूर है...किसी किसी तरह बस में सवार होने का सौभाग्य मिल ही जाता है...और बैठने के लिए सीट भी...सीट पर बैठने के बाद नज़रें बाह ही जाने क्या ढूंढती रहती है...शायद ये भी अच्छा तरीका है सच से मुंह फेरने का...क्युंकि बस में खड़े लोगों के चेहरे को देखकर फिर कई सौ सवाल मन में खड़े हो जाते हैं...पर कोई कर भी क्या सकता है...शायद यही समस्या हर मुम्बईकर जो सीट पर बैठा होता है उसके मन में हो...खैर कैम्पस पहुंचकर ये दुनिया बहुत पीछे छूट जाती है...कैम्पस में होने का अपना ही मज़ा होता है...चारो तरफ हरियाली...सुकून पसरा हुआ...जो मुंबई के शोर-शराबे और भीड़ वाले दुनिया से बिलकुल अलग है...यहाँ आने के बाद हमारा अपना ही एक जहां होता है...जहां मौज मस्ती और दोस्ती का...सिर्फ दोस्त( मेरे ख्याल से...इस जगह मैं गलत भी हो सकती हूँ)साथ होता है...जब युनिवर्सिटी में होती हूँ तो भूल जाती हूँ कि बाहर की दुनिया सिर्फ पीछे छूटी है...उससे पीछा नहीं छूटा है...

कई बार तो लगता है...ज़िन्दगी की बागडोर अगर हमारे हाथों में होती तो कितना अच्छा होता...हम जो चाहते वो करते...लबों पर कभी ख़ामोशी रहती...सदा मुस्कुराते ही रहते...और लोगों के चेहरे पर भी मुस्कराहट लाते...पर कई सौ सवालों के बीच कई सौ ख्वाहिशें भी अपना सर हमेशा उठाये रखतीं हैं...और हम फिर उन्ही सवालों के बीच खड़े रह जाते हैं...सोच का एक किनारा पकडे हुए...!!!



No comments:

Post a Comment